लेखनी कविता - मामूली ज़िन्दगी जीते हुए - कुंवर नारायण

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मामूली ज़िन्दगी जीते हुए / कुंवर नारायण जानता हूँ कि मैं दुनिया को बदल नहीं सकता, न लड़ कर उससे जीत ही सकता हूँ हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ और ...

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