लेखनी कविता - झूला झूलै री -माखन लाल चतुर्वेदी

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झूला झूलै री -माखन लाल चतुर्वेदी संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री, दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री।  गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में, ...

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