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जवानी -माखन लाल चतुर्वेदी प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी! कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी? चल रहीं घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रहीं नदियाँ, ...