लेखनी कविता -जवानी -माखन लाल चतुर्वेदी

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जवानी -माखन लाल चतुर्वेदी  प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी! कौन कहता है कि तू  विधवा हुई, खो आज पानी?   चल रहीं घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रहीं नदियाँ, ...

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