लेखनी कविता -गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर -माखन लाल चतुर्वेदी

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गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर -माखन लाल चतुर्वेदी  सूझ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे! कम्पित दीठों की कमल करों में ले ...

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