लेखनी कविता - दहेज की बारात - काका हाथरसी

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दहेज की बारात / काका हाथरसी  जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र  फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र  यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी  बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी  कहँ 'काका' कविराय, ...

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