लेखनी कविता -घूस माहात्म्य - काका हाथरसी

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घूस माहात्म्य / काका हाथरसी  कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार  ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार  बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी  माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी ...

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