लेखनी कविता - पिल्ला - काका हाथरसी

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पिल्ला / काका हाथरसी  पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ  भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज  बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता  देवी जी के हाथ, दूध ...

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