लेखनी कविता -एक सोच - अमृता प्रीतम

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एक सोच / अमृता प्रीतम भारत की गलियों में भटकती हवा चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती उधार लिए अन्न का एक ग्रास तोड़ती और घुटनों पे हाथ रखके फिर उठती ...

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