लेखनी कविता - धूप का टुकड़ा - अमृता प्रीतम

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धूप का टुकड़ा / अमृता प्रीतम मुझे वह समय याद है--- जब धूप का एक टुकड़ा सूरज की उंगली थाम कर अंधेरे का मेला देखता उस भीड़ में खो गया। सोचती ...

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