ग़ज़ल
🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
चारों जानिब किस क़दर है ख़ैरगी फ़ुटपाथ पर।
आओ हम भी खींच लें इक सैल्फ़ी फ़ुटपाथ पर।
तन हैं नंगे और सर पर धूप है रक्खी हुई।
किस क़दर ज़िल्लत भरी है ज़िन्दगी फ़ुटपाथ पर।
उस बशर की बेबसी का ह़ाल हो कैसे बयाँ।
साँस जिसने ली हो अपनी आख़िरी फ़ुटपाथ पर।
एक दो की बात क्या है शहर में तो रोज़ो शब।
सैंकड़ों सोते हें भूखे आदमी फ़ुटपाथ पर।
जिसको देखो खींच कर फोटो चला जाता है बस।
लाश इक रक्खी हुई है अधजली फ़ुटपाथ पर।
आ गए दीवान जी तो बैंत मारेंगे कई।
मेंहगी पड़ जाए न दिलबर दिल्लगी फ़ुटपाथ पर।
हो गई बज़्म ए सुख़न में आज तक काफ़ी फ़राज़।
थोड़ी-थोड़ी कर लें आओ शायरी फ़ुटपाथ पर।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।
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Punam verma
20-May-2023 09:41 PM
Very nice
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
20-May-2023 06:21 PM
Wah wah
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ऋषभ दिव्येन्द्र
20-May-2023 06:10 PM
बहुत ही बेहतरीन रचना
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