डाकिया
मैं एक साधारण सा डाकिया हूँ, जो झारखंड के एक छोटे से गाँव में घर-घर जाकर चिट्ठियाँ बांटता हूँ। इस नौकरी से जो भी तनख्वाह मिलती है, उससे मेरे परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता है। लेकिन चिट्ठियाँ बांटकर मुझे जो आत्मिक संतुष्टि मिलती है वो मेरे लिए धन से कहीं अधिक अनमोल है।
चिट्ठी सिर्फ चिठ्ठी नहीं होती…. चिट्ठी भेजने वाले के दिल का आईना होती है जो शब्दों के माध्यम से कागज पर उसके जज़्बात बयां करती है और इस चिठ्ठी की बाट जोहती है दरवाज़े पर इंतजार करतीं आँखें बड़ी उम्मीद से। मुझे देखते ही लोगों की आँखे ख़ुशी से झूम उठतीं है और बड़े आस से पूछते हैं…..भैया कोई चिट्ठी आयी की नहीं हमारी? मेरी एक हाँ उन्हें ख़ुशी से पागल कर देती है और एक ना उन्हें मायूस कर देती है।
मैं एक भावनात्मक सेतु का काम करता हूँ जो अलग-अलग स्थान पर रहने वाले लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखता हूँ। मैं एक साधारण सा डाकिया बूढ़े माता पिता की वो आस हूँ जिसका हर महीने वो बेसब्री से इंतज़ार करते हैं कि कब मैं उनके बेटे की चिठ्ठी लेकर उनके पास आऊंगा और उन्हें पढ़कर सुनाऊंगा।
मैं उन पति-पत्नी की आस हूँ जो एक दूसरे से दूर हैं और सिर्फ मेरी लायी हुई चिट्ठियों के माध्यम से ही एक दूसरे का प्रेम भरा स्पर्श महसूस कर पाते हैं।
मैं संदेशवाहक हूँ उम्मीदों का, प्रेम का, दर्द का और महत्वपूर्ण सूचनाओं का। कभी अशिक्षित लोगों की कलम बन जाता हूँ तो कभी उन्हें चिट्ठी पढ़कर सुनाता हूँ।
मैं डाकिया साधारण होते हुए भी खास हूँ, आर्थिक रूप से गरीब होते हुए भी मानसिक रूप से धनवान हूँ। अच्छा लगता है जब भी गाँव से गुजरता हूँ साइकिल पर और गाँव वाले हाथ हिलाकर पूछते हैं… चिट्ठी आयी क्या कोई मेरी? अच्छा लगता है जब मैं चिट्ठी देने उनके घर जाता हूँ और वो साथ बिठाकर चाय पूछते हैं और अपने सुख दुख मेरे साथ बाँटते हैं। मैं डाकिया बहुत खास हूँ क्योंकि मैं संदेशवाहक हूँ खुशियों का, उम्मीदों का और कभी-कभी दर्द का भी।
❤सोनिया जाधव
#लिखे जो खत तुझे
# लेखनी प्रतियोगिता
Seema Priyadarshini sahay
10-Nov-2021 05:31 PM
बहुत खूबसूरत रचना
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Ramsewak gupta
14-Oct-2021 04:16 AM
बहुत सुंदर है आपकी रचना शुभ प्रभात
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Sonia Jadhav
14-Oct-2021 09:53 AM
शुक्रिया
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
13-Oct-2021 11:01 PM
Wah
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