क़िरदार
एक नज़्म मुलाहिज़ा करें
चीज़ सस्ता हूं प बिकता सर– ए–बाज़ार नहीं।
मैं किसी हुस्न के जलवों का तरफ़दार नहीं।
वो जो मिलें तो उन्हें बाहों में भी भर लूंगा।
मेरी आंखों को मगर उनका इंतज़ार नहीं।
कल को ख़्वाहिश थी तेरे जुल्फ़ से हवा भी मिले।
आज हूं जिस्म से छाये को बेकरार नहीं।
हम न बदले हैं मगर कुछ तो रिवायत भी है।
तू मेरे हक़ में नहीं मैं तेरा हक़दार नहीं।
मेरे क़िरदार में ख़ुद्दारी है भर भर के मगर।
प्यार से तौबा करूं ऐसा हूं मक्कार नहीं।
मेरी चाहत में कोई सख़्स मर के जी उठ्ठे।
शुमार– ए– इश्क़ हूं लेकिन मिला किनार नहीं।
उसने बयांँ से मेरे शक को ख़ारिज कर दी।
उसपे यक़ीन है तो शक भी बरक़रार नहीं।
एक पत्थर को चूमकर खुदा बनाया तो।
वो रहा मेरा नहीं या मैं होशियार नहीं।
©®दीपक झा "रुद्रा"
Shrishti pandey
18-Dec-2021 09:16 AM
Wonderfull
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Abhinav ji
17-Dec-2021 11:32 PM
Bahut badhiya
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Swati chourasia
17-Dec-2021 12:16 PM
Wahh bohot hi khubsurat rachna 👌👌
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