Anu koundal

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अक्ष

मंजिल को पाकर,
आसमान में पंख फैलाऊगां।
 पक्षी बनकर मेहनतों से अपनी,
अपना आशियाना बनाऊंगा।
आसमान की ऊंचाईयों को नाप,
ज़मीन से नाता निभाऊंगा।
गोद में उसकी रहकर,
माटी का कर्ज चुकाऊंगा।
जहां भी जाऊं इस जहान में ,
पर अपना अक्ष न भूल पाऊंगा। 


तू जीवन किसी का,
किसी की कर्मभूमि है,,,,
तुझ पे सारा जग टिका,
जमीन तू ही सबकी रंगभूमि है।
 मैं कितना भी उड़ लूं हवाओ में,
जब खुद को असुरक्षित  पाऊंगा,
मां तेरे ही पास आऊंगा।
जहां भी जाऊं इस जहान में,
पर अपना अक्ष न भूल पाऊंगा।



        "अ

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8 Comments

Shrishti pandey

24-Feb-2022 08:55 PM

Nice

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Swati chourasia

24-Feb-2022 09:01 AM

बहुत खूब👌

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Abhinav ji

24-Feb-2022 09:00 AM

Nice

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