गुनाहों का देवता

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साहब में कितने गम्भीर विचारों में डूबा था। और सहसा बड़े विचित्र स्वर में आँखे बन्द कर बिसारिया बोला, "आज्ञा कैसा मनोरम प्रभात है। मेरी आत्मा में घोर अनुभूति हो रही ...

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