प्रेम-पथ(16-16)

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प्रेम-पथ(16/16) प्रेम-डगर है ऊभड़-खाभड़, इसपर चलो सँभल कर भाई। इसमें होती बहुत परीक्षा- असफल यदि,हो जगत-हँसाई। दाएँ-बाएँ निरखत चलना, सदा बिछे काँटे इस पथ पर। थोड़ी बुद्धि-विवेक लगाना, रहे नियंत्रण मन ...

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