नीति-वचन-4

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*नीति-वचन*-4 मिलै न मानिक हर गिरि-सैला। गज-मुक्ता माथे गज बिरला।।     नहिं संतन्ह सर्बत्र निवासा।      चंदन हर बन नहीं सुबासा।। डूबै जे जन सिंधु गँभीरा। मोती मिलै जगत ...

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