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*नीति-वचन*-14 चित्त कबहुँ नहिं खल कै थीरा। रहइ असांत असंत अधीरा।। सिंधु उमड़ि जा मिलै अकासा। चंद्र-प्रेम मा हुलसि-उलासा।। बरसहिं जलद अवनि जब प्यासी। गान परिंदा हरै उदासी ।। ...