निरुपमा–54

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विनीत स्वर से रामचंद्र ने कहा, "जी, मुझे रामचंद्र कहते हैं।" मन से रामचंद्र ने समझ लिया, यही हमारे गाँव की मालकिन हैं। "रामचंद्र कृपालु भजु मन हरन भवभय दारुणम्," निरुपमा ...

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